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मिटटी की खुशबु में
बूंदों की महक में
हर एक मुस्कान में
हर एक आवाज़ में
और हर दिल कि धड़कन में
मिटटी की खुशबु में
बूंदों की महक में
मुस्कान में
आवाज़ में
हर साज़ में हर जान में
रक्त कहो , लहू कहो, चाहे कहो ख़ून
मिटटी के रंग में जब रंगे तब मिले सुकून
बाजुओं में है इमान और मेह्नेत के औज़ार
भर्लो भर्लो आज दिलों में हिंद का जूनून
हिंद का जूनून
है एक सच
नहीं ये भ्रम
जुबां पे रहे
बस वंदे मातरम
रगों में बहता है
नस में उतरता है
जड़ों में, पदों में
पदों कि शाखों में
खेत खलियानों में
मचलती नदियों में
वंदे मातरम
वंदे मातरम
वंदे मातरम
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